Friday, September 10, 2010

टेंशन छोड़े और मौज करे !






तनाव और टेंशन पूरी तरह से दूर नहीं किया जा सकता ये बात हम सभी जानते है लेकिन इसे बेहतर तरीके से मैनेज करते हुए जिंदगी को मजे से जी सकते है । बदलते समय , नयी चुनौतिया , पारिवारिक परिस्थितिया , शारीरिक और आर्थिक बदलाव , भावनात्मक बदलाव, स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओ के कारन "तनाव " या " स्ट्रेस का जन्म होता है। शुरू में इसका पता नहीं चलता है , लेकिन धीरे धीरे यह जब बहुत बढ़ जाता है तब यह आगे चलकर उच्चा रक्तदाब , दिल की बीमारियों में तब्दील हो जाता है । साथ ही इसके दुसरे साइड एफ्फेक्ट्स भी दिखने लगते है जैसे के आत्महत्या , अवसाद, निराशा, हताशा ।


मुझे ऐसा लगता है के जितना जल्दी हमें पता चल जाये की हम तनाव के शिकार है उतना ही जल्दी हम इससे बच सकते है । जाने अनजाने में हम तनाव को ऐसे बुला लेते है


१) पारिवारिक कारण जैसे की तलाक, किसी करीबी रिश्तेदार की मृत्यु हो जाना, शादी या बच्चो का जन्म , परिवार से दूर रहकर नौकरी, शिक्षा के क्षेत्र में असफ़लता , प्रेम विच्छेद


२) व्यक्तिगत कारण जैसे की कोई बड़ा लोन लेना , सोने और खान पान के और जीवन जीने के क्रिया कलापों में बड़े बदलाव होना, ।


३) काम से जुड़े कारण जैसे की ज्यादा समय तक काम करना, नौकरी जाने का डर, नौकरी में बदलाव, कम समय में ज्यादा काम का लक्ष्य, सेल्स के टार्गेट, बॉस का असहयोग, सहकर्मियों का असहयोग, डेड लाईन्स, व्यवसाय या नौकरी में ज्यादा प्रतिस्पर्धा, रात की शिफ्ट में काम, आत्मविश्वास में कमी, नशीली वस्तुओं की आदत ।


तनाव से हममे से कई को बड़ी खतरनाक बीमारिया बिना बुलाये आ सकती है, जैसे की डिप्रेशन , हाई ब्लड प्रेशर, पेट के अल्सर , पाचन सम्भंदी विकार, उलटिया होना, डायरिया, हार्ट फ़ैल, मानसिक रोग, और अन्य कई ।


हम सब स्वयम में कोई बड़ा बदलाव देखे जैसे की पहले से ज्यादा चिर्चिरापन, नींद कम आना, सर में बार बार दर्द, जल्दी गुस्सा आ जाना, खुद से नाराज हो जाना, हर बात के लिए कभी खुद को कभी किसी को जिम्मेदार मान लेना, ज्यादा उम्मीद करना, अकेले बैठने का मन करना, आत्मविश्वास में कमी का एहसास अआदी आदि तो ध्यान देना कही ये स्ट्रेस तो नहीं ?


बचने के लिए हम यह कर सकते है की,


१) सबसे पहले ये तय कर ले की वो कौनसे पॉइंट्स है जहा हमें सोचकर या बाते करके तनाव आ जाता है, उनको सोचना और गंभीरता से लेना छोड़ दे, जिन समस्याओ को हम बदल सकते है, कम कर सकते है उन्हें तत्काल रूप से हल कर दे।


२) भावनात्मक रूप से मजबूत बने, नकारत्मक भाव को खुद पर हावी न होने दे।


कई लोग तनाव को मेनेज करने के लिए ऐसे रास्ते चुनते है जो तनाव को दिन दूना रात चौगुना बढ़ा ही देते है, जैसे शराब ज्यादा पीना, सिगार पीना, दृग्स लेना, गुस्सा निकालना, अकेले घंटो बैठकर सोचते रहेना


तनाव से बचने के लिए हम अच्छी आदते ढाल सकते है जैसे की संतुलित भोजन करना, कसरत करना, योग और ध्यान करना, सुबह की सैर , जोग्गिंग, संगीत और खेल में हिस्सा लेना, काम और परिवार के बिच संतुलन करना, सकारात्मक सोचना, ऐसे लोगो का साथ छोड़ना जो हर बात पर नेगटिव सोचते हो, समाज में सबसे मिलना, अछि नींद लेना, अपने दिल की बात दुसरो से करना ।


तनाव बहुत ज्यादा हो जाने पर कौंसलर से मिलकर ही इल्लाज कराना बेहतर होता है, खुद होकर इससे बचा नहीं जा सकता ,


आपको सुखमय जीवन की शुभकामना ! और आइये, टेंशन छोड़े और मौज करे, !

Wednesday, August 25, 2010

लघु कथा

चांदपुर इलाके के राजा श्री कुवरसिंह जी बहुत अमीर थे। उन्हें किसी चीज़ की कमी नहीं थी, फिर भी उनका स्वास्थय अच्छा नहीं था । बीमारी के मारे वे हमेशा परेशां रहते थे, कई वैद्यो ने उनका इलाज़ किया लेकिन उनको कोई फायदा नहीं हुआ।
राजा की बीमारी बढ़ाते गई और धीरे धीरे यह बात सारे नगर में फैल गयी। तब एक वृद्ध ने राजा के पास आकर कहा , " राजा, आपका इलाज़ करने की मुझे आज्ञा दे , " राजा की अनुमति पाकर वह बोला , " आप किसी सुखी मानव का कुरता पहन ले तो सुखी हो जायेंगे, "
वृद्ध की बात सुनकर सभी दरबारी हसने लगे, लेकिन राजा ने सोचा की जहा इतने इलाज़ किये है वहा एक और सही, राजा के सेवको ने सुखी मानव की बहुत खोज की लेकिन संपूर्ण सुखी मानव उन्हें नहीं मिल पाया। हर आदमी को कोई न कोई दुःख था।
अब राजा खुद ही सुखी मानव की खोज में निकल पड़ा। बहुत तलाश के बाद वे एक खेत में जा पहुंचे, जेठ महीने की धुप में एक किसान अपने खेत में काम में लगा हुआ था । राजा ने उससे पूछा " क्यों जी' तुम सुखी हो ?" किसान की आंखे चमक उठी और चेहरा खिल गया, वह बोला " इश्वर की कृपा से मुझे कोई दुःख नहीं है" । यह सुनकर राजा बहुत खुश हो गया ' उस किसान का कुरता मांगने के लिए उसने जैसे ही आगे बढ़ना चाहा वह यह देखकर चौंक गया की किसान तो सिर्फ धोती पहने हुए था और उसकी बाकी साड़ी देह पसीने से तर बतर थी ।
राजा समझ गया की श्रम करने के कारण ही यह किसान सच्छा सुखी है, उसने आराम चैन छोड़कर श्रम करने का निर्णय किया और थोड़े ही दिनों में राजा की सारी बीमारिया दूर हो गई ।

Saturday, June 19, 2010

मराठी साहित्य और रंगमंच के सबसे ऊँचे " पु ल "

एक बार मै एक नयी नौकरी के पहले ही दिन जब अपने ऑफिस पहुंचा तो वहा पर सभी नव नियुक्त मैनेजरों की ट्रेनिंग शुरू हो गई, ज्यादातर मराठी भाषी नव नियुक्तो के साथ कुछ हिंदी भाषी लोगो को भी नयी नौकरी में मौका मिला था, हालाँकि अब तक मै भी अच्छी मराठी सीख चूका था, प्रशिक्षण देने वाले ट्रेनर ने एक सवाल पूछा था " पु ल " के बारे में कौन बताएगा ?" बाकियों की तो मै नहीं जानता वो सब चुप ही थे, पर मुझे लगा जैसे मेरा सबसे पसंदीदा विषय पूछ लिया गया हो, खड़े होकर बड़े विश्वास और आदर के साथ मैंने कहा था " पु ल देशपांडे , मराठी रंगमंच और साहित्य के सबसे श्रेष्ठतम हस्तियों में से एक "।
जी हा मै दावे के साथ कह सकता हु की यदि आप मराठी भाषी नहीं है या मराठी भाषा नहीं समझते है तो पु ल के कुछ कार्यक्रमों की क्लिप्स देख लीजिये, या उनकी पुस्तकों को पढ़ने का प्रयास करे, धीरे धीरे मराठी भाषा आपको अपनी और अच्छी लगने लगेगी, और आप जान जायेंगे मै किस " पु ल " की बात कर रहा हु, मराठी साहित्य और रंगमंच में पु ल अजोड, बेजोड़, अतुलनीय , और ऐतिहासिक व्यक्तिमत्व है,
पु ल यानि पुरुषोत्तम लक्ष्मण देशपांडे के सामने कोई कितना भी दुखी आदमी दिल खोलकर खिलखिलाकर हंस न पड़े ऐसा होना असंभव ही था, अपनी हाजिर जवाबी और शब्दों पर , मुहावरों पर लाजवाब पकड़ के कारन उनका कोई सानी नहीं है, ८ नवम्बर १९१९ को कोल्हापुर में जन्मे पु ल ने पुणे के प्रसिध फर्गुसन कोलेज में पढ़ाई की थी, और १९४६ में मराठी रंगमंच और लेखन से जुडी "सुनीता ठाकुर " से शादी की, पु ल भारत के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरु के पहले इंटर व्यूव लेने वाले बने, अपने जीवन में उन्हें " महाराष्ट्र भूषण" "महाराष्ट्र गौरव" , मराठी के लिए " साहित्य अकादमी अवार्ड", संगीत नाटक अकदमी अवार्ड, "पद्मश्री" और " पद्मभूषण" अवार्ड मिले, उन्होंने " एकल स्टेज शो " में जो धमाल मचाई वो अभूतपूर्व थी , " बटाट्याची चाल ", " असा मी असामी", हसविण्याचा माझा धंधा", वार्यावरची वरात", और अनेक शानदार एक से बढ़कर एक रचनाये प्रस्तुत की, उनके कुछ अंश मै यहाँ प्रस्तुत कर रहा हु ....
एक बार उनकी एक परिचित लड़की की शादी जुड़ गयी , संयोगवश दोनों घरानों का सरनेम एक जैसा था , ये जानकर पु ल खिलखिलाकर बोल पड़े " भाई कुछ भी कहो, लड़की ने अपने बुजुर्गो का नाम बचा लिया"।
एक बार किसी मित्र के साथ वे मराठी फिल्म कलाकार शरद तलवलकर के घर गए, मित्र ने परिचय करवाया " ये मेरे मित्र शरद तलवलकर है , सज्जन पुरुष है " , इस पर पु ल बोल दिए :" सज्जन तो होंगे ही, देखिये जिस नाम में कोई भी उलटी सीधी टेडी मेढ़ी कोई मात्रा तक नहीं लगी है, वो माणूस सरल ही तो होगा " ।
एक कार्यक्रम में शिव शाहिर बाबा साहेब पुरंदरे जिन्होंने शिवाजी महाराज पर विशाल महानाट्य लिखा उनकी और पु ल की मुलाकात हो गई, पु ल से मजाक में पुरंदरे बोले " आप और भाभी जी दिन भर अपने घर में सिर्फ " खी.. खी " करके हँसते रहते होंगे," इस पर पु ल का चुप रहना नामुमकिन था, बोले " पुरंदरे साहेब , आपके घर में शायद कुछ ऐसा दृश्य रोज ही होता होगा की भाभीजी हाथ में तलवार लिए आप पर टूट पड़ती होंगी और आप घर में भोजन की थाली को ढाल बनाकर उनके वार बचाते होंगे," ।
हिन्दू ह्रदय सम्राट "बालासाहेब ठाकरे बीमारी की वजह से हिंदुजा हॉस्पिटल में दाखिल हुए थे, इस पर पु ल ने कहा " अब गर्व से कहो हम हिंदुजा में है" ।
हद तो एक बार ऐसी हुई की अपनी पत्नी सुनीता के साथ वे एक शादी में गए थे , वहा अपना परिचय कराते हुए वे बोले " मै देशपांडे और ये मेरी उपदेश पांडे " ।

Friday, June 18, 2010

"तुम मुझे यूँ भुला न पाओगे" : हसरत जयपुरी


" हसरत जयपुरी " से भला कौन वाकिफ नहीं, हां जिन्होंने हिंदी फिल्मी गीत नहीं सुने उनकी बात छोडिये । "हसरत" के बिना हिंदी फिल्मी गीतों का सफ़र संभव ही नहीं, १९३९ तक जयपुर में रहकर शिक्षा और तालीम हासिल की, और उम्र के २० साल होते होते शायरी करने लगे, अपने पड़ोस में रहने वाली लड़की " राधा" को दिल दे बैठे, उन्होंने कहा था " मैंने सिर्फ इतना जाना है की प्यार धरम और मजहब नहीं देखता, ऐसा कैसे मुमकिन है के एक मजहब को मानने वाला उसी मजहब की लड़की से प्यार करे, मेरा इश्क बेज़ुबा था, उसे ज़ाहिर करने के लिए मैंने राधा को एक ख़त लिखा, " ये मेरा प्रेम पत्र पढ़कर ..." जो राधा कभी न पढ़ सकी पर राज कपूर ने इसे १९६४ की अपनी फ़िल्म "संगम" में पढ़ा, " ।

मुंबई में हसरत आये और बस कंडक्टर की नौकरी करने लगे, और यदा तदा शायरी मुशायरो में हिस्सा लेने लगे, ऐसे ही एक बार उनकी शायरी को पृथ्वीराज कपूर ने सुना और अपने बेटे राज कपूर को सलाह दी की हसरत को अपनी फिल्मो में मौका दे, उसी समय दो और नौ-जवान शंकर जयकिशन भी राज कपूर से जुड़े , इन सबकी मुलाकात एक रेस्तरां में हुई और राज जी ने इन को अपनी फ़िल्म " बरसात" के लिए रख लिया। और उनका पहला ही गाना " जिया बेकरार है" अभूतपूर्व हिट हुआ, और यह जोड़ी १९७१ तक अनेक फिल्मो में साथ काम करती रही, " मेरा नाम जोकर " के फ़ैल होने के बाद राज कपूर ने इस टीम को छोड़ दिया, और अपनी नयी टीम आनंद बक्षी - लक्ष्मीकांत प्यारेलाल को जोड़ लिया, लेकिन अपनी फ़िल्म " राम तेरी गंगा मैली " में हसरत को वापस ले आये, लेकिन राज kapur की मौत के बाद हसरत का फिल्मी सफ़र थम सा गया था , फिर भी वे कुछ संगीतकारों के साथ काम करते रहे,

हसरत का कहना था की " शायरी सीखी नहीं जा सकती , ये खुदा की नेमत होती है ," उनके हजारो अवार्ड्स में शामिल है दो फिल्म फेयेर अवार्ड्स जो की उन्हें " बहारो फूल बरसाओ" और "ज़िन्दगी एक सफ़र है सुहाना " के लिए मिले, डॉ आंबेडकर अवार्ड " झनक झनक तोरी बाजे पायलिया" के लिए मिले। ३५० फिल्मो के लिए २००० गीतों के रेकॉर्डिंग कर चुके हसरत के सदाबहार गानों में ये गीत कभी न भुलाये जाने वाले है ...ज़िन्दगी एक सफ़र है सुहाना, ..तेरी प्यारी प्यारी सूरत को, ..तेरे ख्यालो में हम, ...तू कहा ये बता, पंख होते तो उड़ आते रे, ..नैन से नैन, एहसान तेरा होगा मुझ पर, ...तेरी जुल्फों से जुदाई, ..तुम मुझे यूँ भुला न पाओगे, ..सायोनारा- सायोनारा , आओ ट्विस्ट करे, ..अजहूँ न आये बालमा , ... सुन साहिबा सुन, ..सौ साल पहले, ...
हसरत की मधुरता का एहसास करने के लिए आज ही रात सोने से पहले ये गीत सुन कर देखिये " तुम मुझे यूँ भुला न पाओगे, हाँ तुम मुझे यूँ भुला न पाओगे,
" जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे, संग संग तुम भी गुनगुनाओगे"

हिंदी साहित्य के हरी...हरिशंकर परसाई




स्कूली पाठ्यक्रम में जब पहली बार अपनी हिंदी की कुमार भारती में मैंने परसाई जी का एक लेख पढ़ा था , तब से मै उनके किसी भी लेख , व्यंग आदि का पूरा दीवाना सा हूँ , सीधे सरल शब्दों में तराशे तीखे तीर जैसे लेख हिंदी साहित्य की व्यंग विधा में लगभग अतुलनीय है,


इटारसी के पास जमनिया गाँव में २२ अगस्त १९२४ में जन्मे हरिशंकर परसाई जी ने नागपुर विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम ऐ किया था, कुछ समय तक लेखन और नौकरी साथ साथ करने के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी और पूर्ण कालिक लेखक के रूप में जबलपुर में स्थायी हो गए। यहाँ से उन्होंने एक साहित्य मगज़ीन " वसुधा" का प्रकाशन भी किया किन्तु नुक्सान के कारन उसे बाद में बंद कर दिया। अपने श्रेष्ठतम रचनाओ में से एक " विकलांग श्रद्धा का दौर " के लिए उन्हें सन १९८२ के साहित्य अकादमी अवार्ड से पुरस्कृत किया गया ।


मै उन्हें क्यों पसंद करता हु , या हिंदी साहित्य में उनका स्थान क्या है? यह जानने के लिए आप उनकी निचे दी हुई रचनाओ में कोई भी एक पढ़ के देख लेवे, मुझे यकीन है परसाई जी को हर कोई पसंद करेगा , उनकी अनमोल कृतियों में " रानी नागफनी की कहानी"," ज्वाला और जल"," बेईमानी की परते", "सदाचार ka तावीज", प्रेमचंद ke फटे जूते, दो naak वाले लोग, अपनी apni बीमारी, वैष्णव की फिसलन, थित्ठुरता गणतंत्र, विकलांग श्रधा का दौर , हँसते hai रोते hai,


हिंदी साहित्य के इस महारथी ने १० अगस्त, 1995 में जबलपुर में अपनी अंतिम साँस ली,

उफ़ ये चूसने वाले ....


आजकल ये चूसने वाले बहुत ही आम हो गए है, आम तो चूसने वाले भी होते है , पर आजकल तो जहा देखिये हर कही चूसने वाले ही जगह जगह मिल जायेंगे , मै इस रविवार को अकेला घर में बैठा सोच रहा था की हर कोई बस चूसने में बिजी है, टी व्ही खोला तो बेतुके विज्ञापन और सास बहु सीरियल दिमाग को चूस रहे थे, सोचा चलो न्यूज़ पेपर ही पढ़ लिया जाये , तो पाया की किसी नेता के जन्मदिन पर ढेर सारे बधाई संदेशो ने समाचार की जगह चूस ली है,

घर और दफ्तर में बीवी और बॉस अपने अपने चुसक यन्त्र लेकर तैयार रहते है, यन्त्र भी ऐसे की आपके सुख चैन का आखरी कतरा भी चूसने को बेताब ! बढ़ती हुई महंगाई में ने भी तनख्वाह को लगभग पूरा ही चूस डाला है, अब सारे कामो में चूसने का काम सबसे फायदेमंद रह गया है, पड़ोस में एक राज्य बिजली विभाग के कर्मचारी भी रहते है, उन्होंने अपने बिजली मीटर को ऐसा चूस के रखा है की कमबख्त आगे ही नहीं बढ़ता ,

पर चूसने का अगर ओलंपिक होता तो शायद सबसे पहेला नम्बर पर होता " मच्छर " !

ये एक ऐसा अतिथि है जो जाने का नाम ही नहीं लेता, आपकी रक्तवाहिनी के पेय पदार्थ को अपनी चुसम नल्ली में डालकर जब चाहे जैसे चाहे आपका खून चूस लेता है, आप हजार उपाय कर ले, चाहे मेट - नेट लगा ले , क्रीम लगा ले, कोइल के पाकेट जला ले, लेकिन जो कैंसर और एड्स वाला खून पीकर भी नहीं मरता उसे भला क्या फर्क ! भैया सबका तोड़ है, इंसान चाँद पर जाए, क्लोन बना ले, पेट्रोल के कुए खोद ले, हवाई जहाज में बैठ ले, पर इस मच्छर से जीत के बताये तो मै मानु, इन घरेलु आतंकवादियों को जैसे अफ्घनिस्तान के अलकायदा का समर्थन मिला है के अमेरिका से भी नहीं मरते,

इन मच्छरों के लिए हम कभी कभी नगर निगम ke सफाई विभाग को दोष दे देते है, उन बेचारे मासूम निठाल्लो का भी क्या दोष ? स्वभाव से वो भी रक्त्चुसन होने से अपने भाई बंद मच्छरों का क्यों बुरा करेंगे,

Thursday, May 27, 2010

सड़क हादसों में मरते परिवार


हम सभी पानी से फैलने वाली बीमारियों से बचने की बहुत फ़िक्र करते है, दिल की बीमारी, मधुमेह, कैंसर से बचने के उपाय भी करने में भी जुटे रहते है , यह करना आवश्यक भी है क्योकि अभी भी भारत में अनेक बीमारियों की वजह से लाखो लोग मौत का शिकार हो जाते है, लेकिन मै आपका ध्यान खींचना चाहता हूँ एक ऐसे महिसासुर की तरफ, जिसके मुह में रोज हजारो लोग अपनी जान गवा रहे है । यह कुछ और नहीं बल्कि दिन बा दिन बढ़ रहे सड़क हादसे है ।


सड़क हादसों की संख्या में भारत अब चीन से आगे निकल चूका है , सड़क परिवहन के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते है की भारत में प्रतिवर्ष १.०५ लाख लोग सड़क दुर्घटनाओ में मर रहे है और ये आकड़ा अब तेज़ गति से बढ़ ही रहा है ..चीन ने जबकि सफलता पूर्वक अपने सड़क हादसों की संख्याओ में क्रमश २००५ और २००६ में ९८७३८ से ८९४५५ तक कमी लाने में सफलता हासिल की है। इसी साल भारत में जबकि भारत में यह लगभग ४ % की चक्रवर्धी दर से बढ़ ही रहा है, और अब भारत दुनिया में सड़क दुर्घटनाओ में नंबर वन है । इसमें आंध्र प्रदेश नंबर वन , महाराष्ट्र दुसरे नंबर पर है।


भारत में हम, समाज और सरकार कोई भी सड़क हादसों को गंभीरता से लेता ही नहीं , सब इसे रोजाना की मामूली बात मानकर अपने काम में लगे रहते है, इसके लिए हम कभी कोई तयारी नहीं करते लेकिन स्वइन फ्लू से बचने के लिए मुह पर कपडा जरूर लगाते है, सरकारी तंत्र के पास इस बारे में कोई नियंत्रण की रणनीति भी नहीं है जैसी की बीमारियों के बारे में देखि जाती है , वर्ल्ड हेल्थ की एक रिपोर्ट कहती है की दुनिया में होने वाली मौतों में पांचवा सबसे बड़ा कारण सड़क हादसे है और २०३० तक ये एक महामारी का विकराल रूप धारण कर लेंगी, इसमें यह बहुत ही अहम् सच जानने में आया है की इन मौतों में ९०% मौते सिर्फ भारत जैसे विकसनशील और गरीब देशो के लोवर और मिडल लोवर आय समूह में होती है। भारत के आकडे सचमुच बहुत ही भयावह नज़र आते है जहा हर घंटे में १३ लोगो की मौत हो रही है, कृपया यह जान लीजिये ये वो आकडे है जो सुचना में आते है, इनमे वो शामिल नहीं जिनकी सुचना नहीं होती मतलब साफ़ है मामला कितना गंभीर है।


भारत में सड़क हादसों का मुख्या कारण तन्त्रपूर्ण वाहन ड्राइविंग शिक्षा का आभाव , शराब पीकर गाडी चलाना , उच्च स्पीड , रोड की ख़राब हालत, हेलमेट और सीट बेल्ट की कम जागरूकता, ओवर लोअडिंग , बच्चो को वाहन चलाने दे देना आदि है,


श्री रोहित बलुजा जो की अब यूनाइटेड नेशंस रोड सेफ्टी कोलाबोरेशंस एंड कमिस्शन ऑफ ग्लोबल रोड सेफ्टी के मेम्बर है, कहते है भारत में सुधर रही सड़को की हालत और निरणतर बन रहे हैवे से स्तिथि में सुधार जितना आया है वह असंतोषजनक है , हमारे देश में सड़क परिवहन का वैज्ञानिक अभियंत्र सन १९३० में यु एस और यु के में इस्तेमाल हो रहे तंत्र के बराबर का भी नहीं है, श्री रोहित बलुजा जी ने अपना एक लम्बा समय भारत के सड़क हादसों की समीक्षा और सुधार प्रयासों के लिए लगाया है जो की अमूल्य है , सन २००० के अगस्त में नयी दिल्ली के नोएडा में उनकी एक एकेडेमी में मैंने सड़क सुरक्षा से संबधित कार्यशाला में हिस्सा लिया था तब इस विषय के प्रति उनके जोश और लगाव से मुझे जो प्रेरणा मिली थी वो इस लेख का कारन है , उसके बाद अवसर मिलने पर मैंने उनसे मिली शिक्षा का उपयोग करते हुए विदर्भा के अकोला , वाशिम, यवतमाल, भुसावल में अनेक बार आम मोटर साईकल धारक, पोलीस कर्मियों, शिक्षको और मेकनिको को बड़ी संख्या में मोटर साईकल कंपनी द्वारा प्रायोजित प्रात्यक्षिक सड़क सुरक्षा कार्यशाला में जानकारिया दी है । पर इस बारे में जो कुछ किया जा रहा है वो ऊंट के मुह में जीरे के बराबर भी नहीं है ,


ऊपर सब पढने के बाद हम अपने आपको असहाय सा पाते है, और अचानक हम में ही से कोई एक , या हमारा पडोसी, या कोई रिश्तेदार, या कोई न कोई दोस्त, या तो फिर कोई न कोई अनजान हमसफ़र सड़क पर कुचला जायेगा तो यह निश्चित जानिये की मौत एक व्यक्ति की नहीं होती , किसी एक कर्र्ता पुरुष के सड़क हादसे में मौत के बाद उसकी परिवार में मासूम बच्चो के सुनहरे भविष्य की, पत्नी की खुशियों की, बूढ़े माँ बाप के सहारे की एक साथ मौत होती है, जो किसी भी बीमारी - महामारी से ज्यादा दुखदायी और घातक है,


हमारे पास सिर्फ दो ही रास्ते है - पहला ये की सब ऐसे ही चलने देते रहे या दूसरा ये की आओ प्रयास करे की हम सड़क दुर्घटनाओ पर जनजागृति फैलाये , चलिए माना की हम दुसरे की शराब पीकर गाडी चलाने की आदत नही सुधार सकते, सड़क की हालत नहीं सुधार सकते, पर हम ये जरूर कर सकते है


हम वाहन चलाते समय गति को स्थति के अनुसार सिमित रखे, मोटर साईकल की अधिकतम गति कभी भी ४५ के ऊपर न ले जाए, हमेशा अच्छी ब्रांड के हेलमेट और ड्राइविंग बेल्ट का उपयोग करे, रोज सुबह चलने से पहले वाहन के ब्रेक क्षमता, लेवर प्ले , हेड लैम्प, ठेल लैम्प, इंडिकेटर , पेट्रोल की जरूरी मात्र, स्पीडोमीटर , इन्जीन में आयल का लेवल, चक्कों में हवा का दबाव , टायरो की हालत इन सब बातो पर जरूर ध्यान दे, घर से निकलते वक़्त किसी भी तरह के तनाव में बिलकुल न रहे, थके न रहे, समय से थोडा पहले निकले, बारिश में स्पीड और भी कम रखे, पानी भरे जगहों पर वाहन न चलाये - बड़े और गहरे गढ़हो में पानी भरा हो सकता है, सड़क पर गिरे हुए दुसरे वाहन के इनजीन आयल पर बारिश का पानी गिरने से फिसलन की वजह से गाडी फिसल सकती है, देर रात में गाडी चलाने से बचे, कभी भी सड़क पर गलत दिशा से ओवरटेक न करे, रेड सिग्नल का आदर करें, सड़क पर चलने वाले अन्य उपयोगकर्ताओ को आदर दे, बच्चो को आगे टेंक पर बैठकर गाडी न चलाये - ऐसे में अचानक दुर्घटना होने पर सबसे ज्यादा चोट अपने होनहार मासूम बच्चो को ही आती है, और सबसे महत्वपूर्ण यह की वाहन चलाने की सही विधि को जाने और सीखे। हम इतना भी कर सके तो ये एक शुरुआत तो होगी एक भस्मासुर को चुनौती देने की !


Wednesday, May 26, 2010

वन्यप्राणी संवर्धन : कितने गंभीर है हम ?


मुझे अच्छी तरह याद है जब मै ७ - ८ साल का रहा हूँगा , लगभग तभी से मुझे पशु पक्षी और सभी वन्य प्राणियों के लिए जबरदस्त आकर्षण रहा है । नागपुर के पास विशाल कन्हान नदी के तट पर बसे कामठी कान्ठोंमेंट में स्थित मध्य भारत के सबसे पुराने और प्रख्यात स्कूलों में से एक " सैंट जोसेफ'स कॉन्वेंट " की भव्य ईमारत है , यहाँ की कक्षाओं से दोपहर की छुट्टी होने के बाद पास ही जल्दी से जल्दी अपने घर पहुंचकर दोपहर का लंच निपटा लेना और फिर हरे भरे शानदार बड़े बड़े वृक्षों से भरपूर प्रकृतिरम्य परिसर में दिनभर खेलना मेरे लिए बहुत मजेदार होता था । यहाँ की हरियाली की वजह से अनेक प्रकार के विभिन्न पशु पक्षियों से यह संपूर्ण क्षेत्र भरा रहता था , मै रोज नए नए पक्षियों को निहारता था और उनके घोसलों में रखे अंडे और बच्चे को रोज रोज उत्सुकता से जाकर चेक किया करता था। बालपन की मासूमियत में मै कई बार छोटे छोटे पशु और पक्षियों के बच्चो को अपने घर ले आता और प्यार से उनकी देखभाल किया करता था । लेकिन लाख मेहनत के बाद भी धीरे धीरे सभी मर जाया करते थे, और मै दुखी मन से उन्हें दफना दिया करता था।

आज भी मै पशु पक्षियों को बहुत दया की नज़र से देखता हूँ , और कभी थोडा अफ़सोस भी होता है की बचपन में अनजाने में मैंने अनेक प्राणियों को दुःख पहुँचाया है। लेकिन मन में एक उद्वेलन सा होता है जब आज मै यह समाचार सुनता या पढ़ता हूँ की फलां जगह पर लगातार शेरो का शिकार हो रहा है, विभिन्न चिड़ियाघरो में लगातार वन्य प्राणी मौत का शिकार हो रहे है। कभी वजह होती है की प्राणी कई दिनों तक भूखे और बीमार रहे , कभी जांच में पाया जाता है की वन्य प्राणियों के लिए रिजर्व राष्ट्रीय पार्को में संसाधन ही नहीं है । हम मानव प्राणियों और पक्षियों को लेकर बहुत ही संवेदनहीन से हो गए है , हम इन्हें अपनी इको सिस्टम में अनावश्यक मानने लगे है, तभी तो हमें इससे कभी भी फर्क नहीं पड़ता की शेरो - हाथियों -बाघों को मारा जा रहा है, उनके जंगलो को तोडा जा रहा है' । लगातार घट रहे वनों से पर्यावरण और पृथ्वी पर जीवन का समतोल खतरनाक स्तिथि में जा पहुंचा है ।

अपने देश में राज्य और केंद्र सरकारे इस बारे में कितना सोचती है ? कुछ जो भी अच्छे लोग वहां बैठे इस विषय में सोचते भी हो तो उसे करनी में ढालने के लिए इच्छाशक्ति कहाँ है ? पैसेवाले माफिया और राष्ट्रीय पार्को की तथा जंगलो की ज़मीन पर अतिक्रमण कब्ज़ा करने वालो की पहुँच जगजाहिर है , हजारो वन्य प्राणियों के हत्या के आरोपी संसारचंद और उसकी अंतर्राष्ट्रीय गैंग की ताकत को भला कौन भूल सकता है ? बार बार अपराध के बाद भी ऐसे आरोपी बड़े आराम से छुट जाते रहे तो यह हमारी हार है ।

हमें इस बारे में गंभीर होना ही पड़ेगा , मनुष्य होने के नाते हम अपनी वसुंधरा की रक्षा के लिए ज़िम्मेदार है ' जिम्मेदारी को टालना अब खतरे से खाली नहीं ... जो वन्य प्राणी हिंसा और स्मगलिंग में लिप्त है , जो ऐसे लोगो को मदद करते है, जो जंगलो को अतिक्रमित कर रहे है - काट रहे है , जो जंगली प्राणियों के अवयवो का व्यापार करते है इन सभी को हम पहचाने और इन्हें हर हाल में रोकें, यही वक़्त की पुकार है । ज़रुरत है की हम सभी अपने रोज़ के काम काज में से सिर्फ थोडा सा वक़्त इन बेजुबानो के लिए भी निकालें - इनके बारे में चिंता करें - और जैसे भी जम पड़े किसी भी माध्यम से इनपर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ आवाज़ उठायें। अन्यथा इन मासूमो की हत्या के पाप के हम भी दोषी होंगे।