Thursday, May 27, 2010

सड़क हादसों में मरते परिवार


हम सभी पानी से फैलने वाली बीमारियों से बचने की बहुत फ़िक्र करते है, दिल की बीमारी, मधुमेह, कैंसर से बचने के उपाय भी करने में भी जुटे रहते है , यह करना आवश्यक भी है क्योकि अभी भी भारत में अनेक बीमारियों की वजह से लाखो लोग मौत का शिकार हो जाते है, लेकिन मै आपका ध्यान खींचना चाहता हूँ एक ऐसे महिसासुर की तरफ, जिसके मुह में रोज हजारो लोग अपनी जान गवा रहे है । यह कुछ और नहीं बल्कि दिन बा दिन बढ़ रहे सड़क हादसे है ।


सड़क हादसों की संख्या में भारत अब चीन से आगे निकल चूका है , सड़क परिवहन के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते है की भारत में प्रतिवर्ष १.०५ लाख लोग सड़क दुर्घटनाओ में मर रहे है और ये आकड़ा अब तेज़ गति से बढ़ ही रहा है ..चीन ने जबकि सफलता पूर्वक अपने सड़क हादसों की संख्याओ में क्रमश २००५ और २००६ में ९८७३८ से ८९४५५ तक कमी लाने में सफलता हासिल की है। इसी साल भारत में जबकि भारत में यह लगभग ४ % की चक्रवर्धी दर से बढ़ ही रहा है, और अब भारत दुनिया में सड़क दुर्घटनाओ में नंबर वन है । इसमें आंध्र प्रदेश नंबर वन , महाराष्ट्र दुसरे नंबर पर है।


भारत में हम, समाज और सरकार कोई भी सड़क हादसों को गंभीरता से लेता ही नहीं , सब इसे रोजाना की मामूली बात मानकर अपने काम में लगे रहते है, इसके लिए हम कभी कोई तयारी नहीं करते लेकिन स्वइन फ्लू से बचने के लिए मुह पर कपडा जरूर लगाते है, सरकारी तंत्र के पास इस बारे में कोई नियंत्रण की रणनीति भी नहीं है जैसी की बीमारियों के बारे में देखि जाती है , वर्ल्ड हेल्थ की एक रिपोर्ट कहती है की दुनिया में होने वाली मौतों में पांचवा सबसे बड़ा कारण सड़क हादसे है और २०३० तक ये एक महामारी का विकराल रूप धारण कर लेंगी, इसमें यह बहुत ही अहम् सच जानने में आया है की इन मौतों में ९०% मौते सिर्फ भारत जैसे विकसनशील और गरीब देशो के लोवर और मिडल लोवर आय समूह में होती है। भारत के आकडे सचमुच बहुत ही भयावह नज़र आते है जहा हर घंटे में १३ लोगो की मौत हो रही है, कृपया यह जान लीजिये ये वो आकडे है जो सुचना में आते है, इनमे वो शामिल नहीं जिनकी सुचना नहीं होती मतलब साफ़ है मामला कितना गंभीर है।


भारत में सड़क हादसों का मुख्या कारण तन्त्रपूर्ण वाहन ड्राइविंग शिक्षा का आभाव , शराब पीकर गाडी चलाना , उच्च स्पीड , रोड की ख़राब हालत, हेलमेट और सीट बेल्ट की कम जागरूकता, ओवर लोअडिंग , बच्चो को वाहन चलाने दे देना आदि है,


श्री रोहित बलुजा जो की अब यूनाइटेड नेशंस रोड सेफ्टी कोलाबोरेशंस एंड कमिस्शन ऑफ ग्लोबल रोड सेफ्टी के मेम्बर है, कहते है भारत में सुधर रही सड़को की हालत और निरणतर बन रहे हैवे से स्तिथि में सुधार जितना आया है वह असंतोषजनक है , हमारे देश में सड़क परिवहन का वैज्ञानिक अभियंत्र सन १९३० में यु एस और यु के में इस्तेमाल हो रहे तंत्र के बराबर का भी नहीं है, श्री रोहित बलुजा जी ने अपना एक लम्बा समय भारत के सड़क हादसों की समीक्षा और सुधार प्रयासों के लिए लगाया है जो की अमूल्य है , सन २००० के अगस्त में नयी दिल्ली के नोएडा में उनकी एक एकेडेमी में मैंने सड़क सुरक्षा से संबधित कार्यशाला में हिस्सा लिया था तब इस विषय के प्रति उनके जोश और लगाव से मुझे जो प्रेरणा मिली थी वो इस लेख का कारन है , उसके बाद अवसर मिलने पर मैंने उनसे मिली शिक्षा का उपयोग करते हुए विदर्भा के अकोला , वाशिम, यवतमाल, भुसावल में अनेक बार आम मोटर साईकल धारक, पोलीस कर्मियों, शिक्षको और मेकनिको को बड़ी संख्या में मोटर साईकल कंपनी द्वारा प्रायोजित प्रात्यक्षिक सड़क सुरक्षा कार्यशाला में जानकारिया दी है । पर इस बारे में जो कुछ किया जा रहा है वो ऊंट के मुह में जीरे के बराबर भी नहीं है ,


ऊपर सब पढने के बाद हम अपने आपको असहाय सा पाते है, और अचानक हम में ही से कोई एक , या हमारा पडोसी, या कोई रिश्तेदार, या कोई न कोई दोस्त, या तो फिर कोई न कोई अनजान हमसफ़र सड़क पर कुचला जायेगा तो यह निश्चित जानिये की मौत एक व्यक्ति की नहीं होती , किसी एक कर्र्ता पुरुष के सड़क हादसे में मौत के बाद उसकी परिवार में मासूम बच्चो के सुनहरे भविष्य की, पत्नी की खुशियों की, बूढ़े माँ बाप के सहारे की एक साथ मौत होती है, जो किसी भी बीमारी - महामारी से ज्यादा दुखदायी और घातक है,


हमारे पास सिर्फ दो ही रास्ते है - पहला ये की सब ऐसे ही चलने देते रहे या दूसरा ये की आओ प्रयास करे की हम सड़क दुर्घटनाओ पर जनजागृति फैलाये , चलिए माना की हम दुसरे की शराब पीकर गाडी चलाने की आदत नही सुधार सकते, सड़क की हालत नहीं सुधार सकते, पर हम ये जरूर कर सकते है


हम वाहन चलाते समय गति को स्थति के अनुसार सिमित रखे, मोटर साईकल की अधिकतम गति कभी भी ४५ के ऊपर न ले जाए, हमेशा अच्छी ब्रांड के हेलमेट और ड्राइविंग बेल्ट का उपयोग करे, रोज सुबह चलने से पहले वाहन के ब्रेक क्षमता, लेवर प्ले , हेड लैम्प, ठेल लैम्प, इंडिकेटर , पेट्रोल की जरूरी मात्र, स्पीडोमीटर , इन्जीन में आयल का लेवल, चक्कों में हवा का दबाव , टायरो की हालत इन सब बातो पर जरूर ध्यान दे, घर से निकलते वक़्त किसी भी तरह के तनाव में बिलकुल न रहे, थके न रहे, समय से थोडा पहले निकले, बारिश में स्पीड और भी कम रखे, पानी भरे जगहों पर वाहन न चलाये - बड़े और गहरे गढ़हो में पानी भरा हो सकता है, सड़क पर गिरे हुए दुसरे वाहन के इनजीन आयल पर बारिश का पानी गिरने से फिसलन की वजह से गाडी फिसल सकती है, देर रात में गाडी चलाने से बचे, कभी भी सड़क पर गलत दिशा से ओवरटेक न करे, रेड सिग्नल का आदर करें, सड़क पर चलने वाले अन्य उपयोगकर्ताओ को आदर दे, बच्चो को आगे टेंक पर बैठकर गाडी न चलाये - ऐसे में अचानक दुर्घटना होने पर सबसे ज्यादा चोट अपने होनहार मासूम बच्चो को ही आती है, और सबसे महत्वपूर्ण यह की वाहन चलाने की सही विधि को जाने और सीखे। हम इतना भी कर सके तो ये एक शुरुआत तो होगी एक भस्मासुर को चुनौती देने की !


Wednesday, May 26, 2010

वन्यप्राणी संवर्धन : कितने गंभीर है हम ?


मुझे अच्छी तरह याद है जब मै ७ - ८ साल का रहा हूँगा , लगभग तभी से मुझे पशु पक्षी और सभी वन्य प्राणियों के लिए जबरदस्त आकर्षण रहा है । नागपुर के पास विशाल कन्हान नदी के तट पर बसे कामठी कान्ठोंमेंट में स्थित मध्य भारत के सबसे पुराने और प्रख्यात स्कूलों में से एक " सैंट जोसेफ'स कॉन्वेंट " की भव्य ईमारत है , यहाँ की कक्षाओं से दोपहर की छुट्टी होने के बाद पास ही जल्दी से जल्दी अपने घर पहुंचकर दोपहर का लंच निपटा लेना और फिर हरे भरे शानदार बड़े बड़े वृक्षों से भरपूर प्रकृतिरम्य परिसर में दिनभर खेलना मेरे लिए बहुत मजेदार होता था । यहाँ की हरियाली की वजह से अनेक प्रकार के विभिन्न पशु पक्षियों से यह संपूर्ण क्षेत्र भरा रहता था , मै रोज नए नए पक्षियों को निहारता था और उनके घोसलों में रखे अंडे और बच्चे को रोज रोज उत्सुकता से जाकर चेक किया करता था। बालपन की मासूमियत में मै कई बार छोटे छोटे पशु और पक्षियों के बच्चो को अपने घर ले आता और प्यार से उनकी देखभाल किया करता था । लेकिन लाख मेहनत के बाद भी धीरे धीरे सभी मर जाया करते थे, और मै दुखी मन से उन्हें दफना दिया करता था।

आज भी मै पशु पक्षियों को बहुत दया की नज़र से देखता हूँ , और कभी थोडा अफ़सोस भी होता है की बचपन में अनजाने में मैंने अनेक प्राणियों को दुःख पहुँचाया है। लेकिन मन में एक उद्वेलन सा होता है जब आज मै यह समाचार सुनता या पढ़ता हूँ की फलां जगह पर लगातार शेरो का शिकार हो रहा है, विभिन्न चिड़ियाघरो में लगातार वन्य प्राणी मौत का शिकार हो रहे है। कभी वजह होती है की प्राणी कई दिनों तक भूखे और बीमार रहे , कभी जांच में पाया जाता है की वन्य प्राणियों के लिए रिजर्व राष्ट्रीय पार्को में संसाधन ही नहीं है । हम मानव प्राणियों और पक्षियों को लेकर बहुत ही संवेदनहीन से हो गए है , हम इन्हें अपनी इको सिस्टम में अनावश्यक मानने लगे है, तभी तो हमें इससे कभी भी फर्क नहीं पड़ता की शेरो - हाथियों -बाघों को मारा जा रहा है, उनके जंगलो को तोडा जा रहा है' । लगातार घट रहे वनों से पर्यावरण और पृथ्वी पर जीवन का समतोल खतरनाक स्तिथि में जा पहुंचा है ।

अपने देश में राज्य और केंद्र सरकारे इस बारे में कितना सोचती है ? कुछ जो भी अच्छे लोग वहां बैठे इस विषय में सोचते भी हो तो उसे करनी में ढालने के लिए इच्छाशक्ति कहाँ है ? पैसेवाले माफिया और राष्ट्रीय पार्को की तथा जंगलो की ज़मीन पर अतिक्रमण कब्ज़ा करने वालो की पहुँच जगजाहिर है , हजारो वन्य प्राणियों के हत्या के आरोपी संसारचंद और उसकी अंतर्राष्ट्रीय गैंग की ताकत को भला कौन भूल सकता है ? बार बार अपराध के बाद भी ऐसे आरोपी बड़े आराम से छुट जाते रहे तो यह हमारी हार है ।

हमें इस बारे में गंभीर होना ही पड़ेगा , मनुष्य होने के नाते हम अपनी वसुंधरा की रक्षा के लिए ज़िम्मेदार है ' जिम्मेदारी को टालना अब खतरे से खाली नहीं ... जो वन्य प्राणी हिंसा और स्मगलिंग में लिप्त है , जो ऐसे लोगो को मदद करते है, जो जंगलो को अतिक्रमित कर रहे है - काट रहे है , जो जंगली प्राणियों के अवयवो का व्यापार करते है इन सभी को हम पहचाने और इन्हें हर हाल में रोकें, यही वक़्त की पुकार है । ज़रुरत है की हम सभी अपने रोज़ के काम काज में से सिर्फ थोडा सा वक़्त इन बेजुबानो के लिए भी निकालें - इनके बारे में चिंता करें - और जैसे भी जम पड़े किसी भी माध्यम से इनपर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ आवाज़ उठायें। अन्यथा इन मासूमो की हत्या के पाप के हम भी दोषी होंगे।