Friday, June 18, 2010

हिंदी साहित्य के हरी...हरिशंकर परसाई




स्कूली पाठ्यक्रम में जब पहली बार अपनी हिंदी की कुमार भारती में मैंने परसाई जी का एक लेख पढ़ा था , तब से मै उनके किसी भी लेख , व्यंग आदि का पूरा दीवाना सा हूँ , सीधे सरल शब्दों में तराशे तीखे तीर जैसे लेख हिंदी साहित्य की व्यंग विधा में लगभग अतुलनीय है,


इटारसी के पास जमनिया गाँव में २२ अगस्त १९२४ में जन्मे हरिशंकर परसाई जी ने नागपुर विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम ऐ किया था, कुछ समय तक लेखन और नौकरी साथ साथ करने के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी और पूर्ण कालिक लेखक के रूप में जबलपुर में स्थायी हो गए। यहाँ से उन्होंने एक साहित्य मगज़ीन " वसुधा" का प्रकाशन भी किया किन्तु नुक्सान के कारन उसे बाद में बंद कर दिया। अपने श्रेष्ठतम रचनाओ में से एक " विकलांग श्रद्धा का दौर " के लिए उन्हें सन १९८२ के साहित्य अकादमी अवार्ड से पुरस्कृत किया गया ।


मै उन्हें क्यों पसंद करता हु , या हिंदी साहित्य में उनका स्थान क्या है? यह जानने के लिए आप उनकी निचे दी हुई रचनाओ में कोई भी एक पढ़ के देख लेवे, मुझे यकीन है परसाई जी को हर कोई पसंद करेगा , उनकी अनमोल कृतियों में " रानी नागफनी की कहानी"," ज्वाला और जल"," बेईमानी की परते", "सदाचार ka तावीज", प्रेमचंद ke फटे जूते, दो naak वाले लोग, अपनी apni बीमारी, वैष्णव की फिसलन, थित्ठुरता गणतंत्र, विकलांग श्रधा का दौर , हँसते hai रोते hai,


हिंदी साहित्य के इस महारथी ने १० अगस्त, 1995 में जबलपुर में अपनी अंतिम साँस ली,

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