Friday, June 18, 2010

उफ़ ये चूसने वाले ....


आजकल ये चूसने वाले बहुत ही आम हो गए है, आम तो चूसने वाले भी होते है , पर आजकल तो जहा देखिये हर कही चूसने वाले ही जगह जगह मिल जायेंगे , मै इस रविवार को अकेला घर में बैठा सोच रहा था की हर कोई बस चूसने में बिजी है, टी व्ही खोला तो बेतुके विज्ञापन और सास बहु सीरियल दिमाग को चूस रहे थे, सोचा चलो न्यूज़ पेपर ही पढ़ लिया जाये , तो पाया की किसी नेता के जन्मदिन पर ढेर सारे बधाई संदेशो ने समाचार की जगह चूस ली है,

घर और दफ्तर में बीवी और बॉस अपने अपने चुसक यन्त्र लेकर तैयार रहते है, यन्त्र भी ऐसे की आपके सुख चैन का आखरी कतरा भी चूसने को बेताब ! बढ़ती हुई महंगाई में ने भी तनख्वाह को लगभग पूरा ही चूस डाला है, अब सारे कामो में चूसने का काम सबसे फायदेमंद रह गया है, पड़ोस में एक राज्य बिजली विभाग के कर्मचारी भी रहते है, उन्होंने अपने बिजली मीटर को ऐसा चूस के रखा है की कमबख्त आगे ही नहीं बढ़ता ,

पर चूसने का अगर ओलंपिक होता तो शायद सबसे पहेला नम्बर पर होता " मच्छर " !

ये एक ऐसा अतिथि है जो जाने का नाम ही नहीं लेता, आपकी रक्तवाहिनी के पेय पदार्थ को अपनी चुसम नल्ली में डालकर जब चाहे जैसे चाहे आपका खून चूस लेता है, आप हजार उपाय कर ले, चाहे मेट - नेट लगा ले , क्रीम लगा ले, कोइल के पाकेट जला ले, लेकिन जो कैंसर और एड्स वाला खून पीकर भी नहीं मरता उसे भला क्या फर्क ! भैया सबका तोड़ है, इंसान चाँद पर जाए, क्लोन बना ले, पेट्रोल के कुए खोद ले, हवाई जहाज में बैठ ले, पर इस मच्छर से जीत के बताये तो मै मानु, इन घरेलु आतंकवादियों को जैसे अफ्घनिस्तान के अलकायदा का समर्थन मिला है के अमेरिका से भी नहीं मरते,

इन मच्छरों के लिए हम कभी कभी नगर निगम ke सफाई विभाग को दोष दे देते है, उन बेचारे मासूम निठाल्लो का भी क्या दोष ? स्वभाव से वो भी रक्त्चुसन होने से अपने भाई बंद मच्छरों का क्यों बुरा करेंगे,

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