Wednesday, May 26, 2010

वन्यप्राणी संवर्धन : कितने गंभीर है हम ?


मुझे अच्छी तरह याद है जब मै ७ - ८ साल का रहा हूँगा , लगभग तभी से मुझे पशु पक्षी और सभी वन्य प्राणियों के लिए जबरदस्त आकर्षण रहा है । नागपुर के पास विशाल कन्हान नदी के तट पर बसे कामठी कान्ठोंमेंट में स्थित मध्य भारत के सबसे पुराने और प्रख्यात स्कूलों में से एक " सैंट जोसेफ'स कॉन्वेंट " की भव्य ईमारत है , यहाँ की कक्षाओं से दोपहर की छुट्टी होने के बाद पास ही जल्दी से जल्दी अपने घर पहुंचकर दोपहर का लंच निपटा लेना और फिर हरे भरे शानदार बड़े बड़े वृक्षों से भरपूर प्रकृतिरम्य परिसर में दिनभर खेलना मेरे लिए बहुत मजेदार होता था । यहाँ की हरियाली की वजह से अनेक प्रकार के विभिन्न पशु पक्षियों से यह संपूर्ण क्षेत्र भरा रहता था , मै रोज नए नए पक्षियों को निहारता था और उनके घोसलों में रखे अंडे और बच्चे को रोज रोज उत्सुकता से जाकर चेक किया करता था। बालपन की मासूमियत में मै कई बार छोटे छोटे पशु और पक्षियों के बच्चो को अपने घर ले आता और प्यार से उनकी देखभाल किया करता था । लेकिन लाख मेहनत के बाद भी धीरे धीरे सभी मर जाया करते थे, और मै दुखी मन से उन्हें दफना दिया करता था।

आज भी मै पशु पक्षियों को बहुत दया की नज़र से देखता हूँ , और कभी थोडा अफ़सोस भी होता है की बचपन में अनजाने में मैंने अनेक प्राणियों को दुःख पहुँचाया है। लेकिन मन में एक उद्वेलन सा होता है जब आज मै यह समाचार सुनता या पढ़ता हूँ की फलां जगह पर लगातार शेरो का शिकार हो रहा है, विभिन्न चिड़ियाघरो में लगातार वन्य प्राणी मौत का शिकार हो रहे है। कभी वजह होती है की प्राणी कई दिनों तक भूखे और बीमार रहे , कभी जांच में पाया जाता है की वन्य प्राणियों के लिए रिजर्व राष्ट्रीय पार्को में संसाधन ही नहीं है । हम मानव प्राणियों और पक्षियों को लेकर बहुत ही संवेदनहीन से हो गए है , हम इन्हें अपनी इको सिस्टम में अनावश्यक मानने लगे है, तभी तो हमें इससे कभी भी फर्क नहीं पड़ता की शेरो - हाथियों -बाघों को मारा जा रहा है, उनके जंगलो को तोडा जा रहा है' । लगातार घट रहे वनों से पर्यावरण और पृथ्वी पर जीवन का समतोल खतरनाक स्तिथि में जा पहुंचा है ।

अपने देश में राज्य और केंद्र सरकारे इस बारे में कितना सोचती है ? कुछ जो भी अच्छे लोग वहां बैठे इस विषय में सोचते भी हो तो उसे करनी में ढालने के लिए इच्छाशक्ति कहाँ है ? पैसेवाले माफिया और राष्ट्रीय पार्को की तथा जंगलो की ज़मीन पर अतिक्रमण कब्ज़ा करने वालो की पहुँच जगजाहिर है , हजारो वन्य प्राणियों के हत्या के आरोपी संसारचंद और उसकी अंतर्राष्ट्रीय गैंग की ताकत को भला कौन भूल सकता है ? बार बार अपराध के बाद भी ऐसे आरोपी बड़े आराम से छुट जाते रहे तो यह हमारी हार है ।

हमें इस बारे में गंभीर होना ही पड़ेगा , मनुष्य होने के नाते हम अपनी वसुंधरा की रक्षा के लिए ज़िम्मेदार है ' जिम्मेदारी को टालना अब खतरे से खाली नहीं ... जो वन्य प्राणी हिंसा और स्मगलिंग में लिप्त है , जो ऐसे लोगो को मदद करते है, जो जंगलो को अतिक्रमित कर रहे है - काट रहे है , जो जंगली प्राणियों के अवयवो का व्यापार करते है इन सभी को हम पहचाने और इन्हें हर हाल में रोकें, यही वक़्त की पुकार है । ज़रुरत है की हम सभी अपने रोज़ के काम काज में से सिर्फ थोडा सा वक़्त इन बेजुबानो के लिए भी निकालें - इनके बारे में चिंता करें - और जैसे भी जम पड़े किसी भी माध्यम से इनपर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ आवाज़ उठायें। अन्यथा इन मासूमो की हत्या के पाप के हम भी दोषी होंगे।

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